
प्रिय पाठकों, आपका स्वागत है हमारे वेबसाईट personalstudys.com में। दोस्तों आज के इस ब्लॉग समास (samas)- Types of samas और उदाहरण में हम आपको सन्धि के प्रकार एवं उदाहरण, संधि के भेद, आदि के बारे में बताएंगे।
दोस्तों आज का ब्लाग पोस्ट किसी भी प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी के लिए काफी महत्वपूर्ण है, तो इसे अन्त तक जरुर पढें।
समास क्या होते हैं? | समास (samas)- Types of samas और उदाहरण
समास की परिभाषा
अलग अर्थ रखने वाले दो शब्दों या पदों (पूर्वपद तथा उत्तरपद) के मेल से बना तीसरा नया शब्द या पद समास या समस्त पद कहलाता है तथा वह प्रक्रिया जिसके द्वारा ‘समस्त पद’ बनता है, समास-प्रक्रिया कही जाती है।
समास-प्रक्रिया में जिन दो शब्दों का मेल होता है, उनके अर्थ परस्पर भिन्न होते हैं तथा इन दोनों के योग से जो एक नया शब्द बनाते हैं; उसका अर्थ इन दोनों से अलग होता है।
जैसा ऊपर बताया गया है, समास-रचना दो शब्दों या दो पदों के बीच होती है तथा इसमें पहला पद ‘पूर्वपद तथा दूसरा पद उत्तर पद कहलाता है। ‘पूर्वपद’ तथा ‘उत्तरपद’ के संयोग से जो नया शब्द बनता है,उसे समस्तपद कहते हैं।
समास की परिभाषा के निम्नलिखित उदाहरण इस प्रकार हैं-
पूर्वपद |
उत्तरपद |
समस्तपद |
देश |
भक्त |
देशभक्त |
नीला |
गगन |
नीलगगन |
राष्ट्र |
नायक |
राष्ट्रनायक |
नर |
नारी |
नर-नारी |
प्रति |
अक्ष |
प्रत्यक्ष |
पंच |
आनन |
पंचानन |
काली |
मिर्च |
कालीमिर्च |
दही |
बड़ा |
दहीवड़ा |
अष्ट |
अध्यायी |
अष्टाध्यायी |
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समास की विशेषताएं
समास की निम्नलिखित विशेषताएँ नीचे दी गई हैं-
समास में दो पदों का योग होता है। दो पद मिलकर एक पद का रूप धारण कर लेते हैं। दो पदों के बीच की विभक्ति का लोप हो जाता है। दो पदों में कभी पहला पद प्रधान और कभी दूसरा पद प्रधान होता है। कभी दोनों पद प्रधान होते हैं। संस्कृत में समास होने पर संधि अवश्य होती है, किंतु हिंदी में ऐसी विधि नहीं है।
समास-विग्रह
समस्त पद के दोनों पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया समास-विग्रह कही जाती है। पदों को अलग-अलग करते समय दोनों पदों के बीच के विभक्ति/कारकीय-चिह्नों को भी जोड़ दिया जाता है; जैसे- ‘डाकगाड़ी समस्त पद का विग्रह होगा-‘डाक के लिए गाड़ी’ अर्थात दोनों पदों के बीच के कारकीय-चिह्न ‘के लिए’, जिसका लोप कर दिया गया था, उसे पुनः यथास्थान लगा दिया गया है।
अन्य उदाहरण देखिए-
समस्तपद |
विग्रह |
यशप्राप्त |
यश को प्राप्त |
अकाल-पीड़ित |
अकाल से पीड़ित |
असफल |
जो सफल न हो |
दोपहर |
दो पहरों का समाहार |
दाल-चावल |
दाल और चावल |
देशवासी |
देश का वासी |
पीतांबर |
पीत (पीला) है जो अंबर (वस्त्र) |
समास-विग्रह प्रक्रिया के दौरान दोनों पदों को अलग-अलग किया जाता है तथा दोनों के बीच कोई न कोई कारकीय-चिह्न भी लगा दिया जाता है, अत: समास-विग्रह वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी समस्तपद के दोनों पदों को अलग-अलग किया जाता तथा समस्त पद बनाने से पहले जिन कारकीय-चिन्हों या अंशों का लोप कर दिया गया था, उन्हें पुन: जोनों पदों के साथ जोड़ दिया जाता है।
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समास के भेद
Types of Samas in Hindi के निम्नलिखित भेद होते है-
- द्वन्द्व समास
- अव्ययीभाव समास
- तत्पुरुष समास
- बहुव्रीहि समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
द्वंद्व समास
- द्वंद्व समास में कोई पदगौण नहीं होता बल्कि दोनों ही पद प्रधान होते हैं।
- समस्तपद बनाते समय दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोधक अव्ययों-‘और’, ‘तथा’, ‘या’ आदि को हटा दिया जाता है तथा विग्रह करते समय इनको पुनः दोनों पदों के बीच जोड़ दिया जाता है; जैसे- राम-श्याम. इसका विग्रह होगा- राम और श्याम।
अन्य उदाहरण देखिए-
समस्तपद | विग्रह |
दाल-चावल | दाल और चावल |
जल-थल | जल और थल |
माता-पिता | माता और पिता |
नदी-नाले | नदी और नाले |
बाप-दादा | बाप और दादा |
छोटा-बड़ा | छोटा और बड़ा |
राधा-कृष्ण | राधा और कृष्ण |
पूर्व-पश्चिम | पूर्व और पश्चिम |
आगे-पीछे | आगे और पीछे |
गुण-दोष | गुण और दोष |
स्वर्ग-नर्क | स्वर्ग और नर्क |
अन्न-जल | अन्न और जल |
खट्टा-मीठा | खट्टा और मीठा |
रात-दिन | रात और दिन |
हार-जीत | हार और जीत |
अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद कोई अव्यय (अविकारी शब्द) होता है, उस समास को अव्ययीभाव समास कहते हैं: जैसे- ‘यथासमय’ समस्तपद ‘यथा’ और ‘समय’ के योग से बना है। इसका पूर्वपद ‘यथा’ अव्यय है और इसका विग्रह होगा- ‘समय के अनुसार।
अन्य उदाहरण देखिए-
समस्तपद | अव्यय | विग्रह |
आजीवन | आ | जीवन भर |
यथोचित | यथा | जितना उचित हो |
यथाशक्ति | यथा | शक्ति के अनुसार |
भरपूर | भर | पूरा भरा हुआ |
आमरण | आ | मरण तक |
बेमिसाल | बे | जिसकी मिसाल न हो |
बेमौके | बे | बिना मौके के |
अनुरूप | अनु | रूप के अनुसार |
बेखटके | बे | बिना खटके के |
प्रतिदिन | प्रति | दिन-दिन/हर दिन |
हरघड़ी | हर | घड़ी-घड़ी |
प्रत्येक | प्रति | एक-एक |
बाअदब | बा | अदब के साथ |
प्रत्यक्ष | प्रति | आँखों के सामने |
कर्मधारय समास
कर्मधारय समास के दोनों पदों के बीच दो तरह के संबंध हो सकते हैं- विशेषण-विशेष्य तथा उपमेय-उपमान* । वस्तुतः उपमान भी उपमेय की विशेषता बताने का ही कार्य करता है। विशेषण-विशेष्य संबंध वाले कर्मधारय समास इस प्रकार हैं:
उदाहरण देखिए-
विशेषण |
विशेष्य |
समस्तपद |
विग्रह |
नील |
गाय |
नीलगाय |
नीली है जो गाय |
महा |
आत्मा |
महात्मा |
महान है जो आत्मा |
भला |
मानस |
भलामानस |
भला है जो मानस |
महा |
देव |
महादेव |
महान है जो देव |
पर |
नारी |
परनारी |
पराई है जो नारी |
उत्तम |
पुरुष |
पुरुषोत्तम |
उत्तम है जो पुरुष |
अन्य उदाहरण देखिए-
समस्तपद | विग्रह |
कालीमिर्च | काली है जो मिर्च |
कापुरुष | का (कायर) है जो पुरुष |
सत्धर्म | सत् (सच्चा) है जो धर्म |
प्रधानमंत्री | प्रधान है जो मंत्री |
अंधविश्वास | अंधा है जो विश्वास |
महाराज | महान है जो राजा |
महर्षि | महान है जो ऋषि |
अंधकूप | अंधा है जो कूप |
उपमेय-उपमान संबंध वाले कर्मधारय समास
इस संबंध में पूर्वपद के स्थान पर कभी उपमेय आता है तो कभी उपमान; जैसे
उपमेय-उपमान- ‘उसके नेत्र मृग के समान हैं’ इस वाक्य में नेत्रों’ की उपमा ‘मृग’ से दी गई है। यहाँ ‘नेत्र’ उपमेय हैं तथा उपमान। जिस वस्तु व्यक्ति को उपमा दी जाती है, उसे ‘उपमेय’ तथा जिस वस्तु व्यक्ति से दी जाती है, उसे ‘उपमान’ कहते हैं। देखिए कुछ उदाहरण –
समस्तपद | उपमान-उपमेय | विग्रह |
घनश्याम | घन+श्याम | घन के समान श्याम/घनरूपी श्याम |
कमलनयन | कमल + नयन | कमल के समान नयन/कमलरूपी नयन |
संसारसागर | संसार रूपी सागर |
कंचनवर्ण | कंचन के समान वर्ण |
देहलता | देह रूपी लता |
चंद्रमुखी | चंद्रमा के समान मुख वाली स्त्री |
मुखचंद्र | मुखरूपी चंद्र |
क्रोध रूपी अग्नि | क्रोधाग्नि |
वचनामृत | अमृत के समान वचन |
चरणकमल | कमल के समान चरण |
विद्याधन | विद्या रूपी धन |
प्राणप्रिय | प्राणों के समान प्रिय |
जरूर देखें :- समास के महत्वपूर्ण प्रश्न
द्विगु समास
- द्विगुसमास भी तत्पुरुष समास का ही उपभेद है; अत: इसका भी पूर्वपद गौण तथा उत्तरपद प्रधान होता है।
- द्विगु समास’ तथा ‘कर्मधारय समास’ में सबसे बड़ा अंतर यही है कि द्विगु समास कापूर्वपद संख्यावाची विशेषण होता है बकि कर्मधारय समास का पूर्वपद अन्य कोई भी विशेषण हो सकता है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि द्विगु समास काउत्तरपद किसी समूह का बोध कराता है। यदि विग्रह करते समय उत्तरपद के साथ समूह या समाहार शब्द का प्रयोग नहीं किया गया हो तो पूर्वपद संख्यावाची होते हुए भी यह ‘कर्मधारय समास’ कहलाएगा। ‘द्विगु समास’ के उदाहरण इस प्रकार हैं:
समस्तपद | विग्रह-1 (कर्मधारय समास) | विग्रह-II (द्विगु समास) |
पंचतंत्र | पाँच हैं तंत्र जो | पाँच तंत्रों का समाहार |
अष्टसिद्धि | आठ सिद्धियां हैं जो | आठ सिद्धियों का समाहार |
चतुर्भुज | चार भुजाएँ हैं जो | चार भुजाओं का समाहार |
चवन्नी | चार आने हैं जो | चार आनों का समाहार |
अन्य उदाहरण देखिए-
समस्तपद |
समास-विग्रह |
दुराहा |
दो राहों का समाहार |
सतसई |
सात सौ दोहों का समाहार |
तिरंगा |
तीन रंगों का समाहार |
दशानन |
दस आननों (मुखों) का समाहार |
पंचवटी |
पाँच वट वृक्षों का समूह |
सप्ताह |
सात दिनों का समूह |
पंजाब |
पाँच आबों का समाहार |
अठन्नी |
आठ आनों का समाहार |
नवग्रह |
नौ ग्रहों का समाहार |
नवरत्न |
नव रत्नों का समाहार |
शताब्दी |
सौ अब्दों (वर्षों) का समाहार |
नवरात्र |
नव (नौ) रातों का समाहार |
पंचमुखी |
पाँच मुखों का समाहार |
त्रिफला |
तीन फलों का समाहार |
बहुव्रीहि समास
‘बहुव्रीहि समास’ वह समास है, जिसके दोनों पद गौण होते हैं। वस्तुत: बहुव्रीहि समास में न तो पूर्वपद प्रधान होता है और न ही उत्तरपद। बल्कि इसके दोनों पद परस्पर मिलकर किसी तीसरे बाहरी पद के बारे में कुछ कहते हैं और यह तीसरा पद ही ‘प्रधान हाता है । उदाहरण के लिए, त्रिलोचन शब्द की रचना पर ध्यान दीजिए। यह शब्द ‘त्रि’ तथा ‘लोचन’ दो पदों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-तीन नेत्र। यदि इस शब्द का यही विग्रह किया जाए तो विशेषण (तीन) तथा विशेष्य। (लोचन) होने के कारण यह कर्मधारय समास का उदाहरण होगा तथा यदि विग्रह ‘तीन लोचनों का समाहार’ किया जाए तो यह द्विगु समास का उदाहरण होगा।
किंतु यदि इसका विग्रह किया जाए -तीन हैं नेत्र जिसके अर्थात महादेव तो यही उदाहरण बहुव्रीहि समास का हो जाएगा; क्योंकि इस विग्रह में ‘त्रि’ तथा ‘लोचन’ दोनों पद मिलकर तीसरे पद ‘महादेव’ की विशेषता बता रहे हैं।
अन्य उदाहरण :-
समस्तपद |
विग्रह |
प्रधान पद |
अंशुमाली |
अंशु (किरणें) हैं मालाएँ जिसकी |
सूर्य |
चारपाई |
चार हैं पाए जिसके |
पलंग |
तिरंगा |
तीन रंग हैं जिसके |
भारतीय राष्ट्रध्वज |
विषधर |
विष को धारण किया है जिसने |
शिव |
षडानन |
षट् (छह) हैं आनन (मुख) जिसके |
कार्तिकेय |
चक्रधर |
चक्र धारण किया है जिसने |
विष्णु |
गजानन |
गज के समान आनन है जिसका |
गणेश |
घनश्याम |
घन के समान श्याम (काले) हैं जो |
कृष्ण |
मेघनाद |
मेघ के समान करता है नाद जो |
रावण-पुत्र इंद्रजीत |
विषधर |
विष को धारण करता है जो |
सर्प |
चतुरानन |
चार आनन है जिसका |
ब्रह्मा |
गिरिधर |
गिरि को धारण किया है जिसने |
श्री कृष्ण |
सुलोचना |
सुंदर लोचन हैं जिसके |
विशेष स्त्री |
तत्पुरुष समास
जिस समस्तपद में ‘पूर्वपद’ गौण तथा उत्तरपद’ प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है।चूंकि तत्पुरुष समास का पूर्वपद विशेषण होता है, अतः गौण होता है तथा उत्तरपद विशेष्य होने के कारण प्रधान होता है।तत्पुरुष समास के विग्रह के समय समस्त कारकों के कारकीय-चिह्न जिनका समास करते समय दिया गया था, पुन: जोड़े जाते हैं; जैसे- रोगमुक्त रोग से मुक्त (‘से’ अपादान कारक का चिह्न), जीवनसाथी जीवन का साथी (‘का’ संबंध कारक का चिह्न) आदि।
परीक्षा मे पूछे गए समास के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न –
- प्रतिदिन मे समास – अव्ययीभाव समास
- हरफनमौला मे समास – तत्पुरुष समास
- पंसेरी मे समास – द्विगु समास
- कार्तिकेय मे समास – बहुब्रिही समास
- पीतांबर मे समास- बहुब्रिही समास
- चिड़ीमार मे समास- तत्पुरुष समास
- अकाल पीड़ित मे समास- तत्पुरुष समास
- चौराहा मे समास- द्विगु समास
- दशनान मे समास – बहुब्रिही समास
- रसोईघर मे समास- तत्पुरुष समास
- नीलगाय मे समास- कर्मधारय समास
- पंचवटी मे समास – द्विगु समास
- चन्द्रशेखर मे समास- बहुब्रिही समास
- बहन-भाई मे समास- द्वंद समास
- देशभक्ति मे समास- तत्पुरुष समास
- नरोत्तम मे समास- तत्पुरुष समास
- कमलनयन मे समास- कर्मधारय समास
- परमानंद मे समास- कर्म धारय समास
- पीतांबर मे समास- बहुब्रिही समास
- गंगाजल मे समास- सम्बन्ध तत्पुरुष
- देशसेवा मे समास- सम्बन्ध तत्पुरुष
- नगरप्रवेश मे समास- अधिकरण समास
- वनवास मे समास- अधिकरण समास
- महावीर मे समास- कर्मधारय समास
- परमेश्वर मे समास- कर्मधारय समास
- नवग्रह मे समास- द्विगु समास
- घनश्याम मे कौन समास है – कर्मधारय
- पुस्तकालय मे समास – तत्पुरुष समास
- नरोत्तम मे समास – तत्पुरुष समास
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बहुत ही अच्छी जानकारी है धन्यवाद सर