Tatpurush samas Hindi Grammar तत्पुरुष समास

Tatpurush samas :-

प्रिय पाठकों, आपका स्वागत है हमारे वेबसाईट personalstudys.com में। दोस्तों आज के इस ब्लॉग  Tatpurush samas में हम आपको तत्पुरुष समास के भेद, तत्पुरुष समास की रचना, तत्पुरुष समास के भेद आदि के बारे में बताएंगे। 

दोस्तों आज का ब्लाग पोस्ट किसी भी प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी के लिए काफी महत्वपूर्ण है, तो इसे अन्त तक जरुर पढें।

THIS BLOG INCLUDES:

  1. तत्पुरुष समास
  2. तत्पुरुष समास की रचना
  3. तत्पुरुष समास के भेद
    • कर्म तत्पुरुष (चिह्न-‘को’)
    • करण तत्पुरुष (चिह्न-‘से’/के द्वारा’)
    • संप्रदान तत्पुरुष (चिह्न- के लिए)
    • अपादान तत्पुरुष ( चिन्ह-‘से’ अलग होने के अर्थ में)
    • संबंध तत्पुरुष (चिह्न-‘का, के, की’)
    • अधिकरण तत्पुरुष (चिह्न-‘में, ‘पर’)
  4. कारकीय-चिह्न रहित तत्पुरुष समास
  5. विभिन्न समासों में अंतर
    • कर्मधारय तथा द्विगु समास में अंतर
    • द्विगु तथा बहुव्रीहि समास में अंतर

तत्पुरुष समास

जिस समस्तपद में ‘पूर्वपद’ गौण तथा उत्तरपद’ प्रधान होता है, वहाँ तत्पुरुष समास होता है। चूंकि तत्पुरुष समास का पूर्वपद विशेषण होता है, अतः गौण होता है तथा उत्तरपद विशेष्य होने के कारण प्रधान होता है।तत्पुरुष समास के विग्रह के समय समस्त कारकों के कारकीय-चिह्न जिनका समास करते समय दिया गया था, पुन: जोड़े जाते हैं; जैसे- रोगमुक्त रोग से मुक्त (‘से’ अपादान कारक का चिह्न), जीवनसाथी जीवन का साथी (‘का’ संबंध कारक का चिह्न) आदि।

उदाहरण देखिए :

समस्तपद

पूर्वपद (गौण)

कारकीय-चिह्न

उत्तरपद (प्रधान)

युद्धक्षेत्र

युद्ध

का

क्षेत्र

गुरुदक्षिणा

गुरु

के लिए

दक्षिणा

यशप्राप्त

यश

को

प्राप्त

कुलश्रेष्ठ

कुल

में

श्रेष्ठ

तत्पुरुष समास की रचना

हिंदी में तत्पुरुष समास की रचना तीन तरह से हो सकती है, जैसे-

1. संज्ञा + संज्ञा के मेल से; जैसे-

राजा का पुत्र

राजपुत्र

उद्योग का पति

उद्योगपति

सिर का दर्द

सिरदर्द

2. संज्ञा + विशेषण के मेल से; जैसे-

धर्म से भ्रष्ट

धर्मभ्रष्ट

भय से मुक्त

भयमुक्त

दान में वीर

दानवीर

3. संज्ञा + कृदंत के मेल से; जैसे-

रेखा से अंकित

रेखांकित

स्व द्वारा रचित

स्वरचित

तुलसी द्वारा कृत

तुलसीकृत

आप देख सकते हैं कि तीनों ही प्रकार से बने तत्पुरुष समासों के पूर्वपद गौण तथा विशेषण का प्रकार्य करने के कारण व्याकरणिक कोटि की दृष्टि से विशेषण हैं। वस्तुतः विशेषण का कार्य विशेष्य के अर्थ क्षेत्र को सीमित करना होता है। इस दृष्टि से ‘दानपात्र’ (संज्ञा + संज्ञा) समस्तपद का पूर्वपद ‘दान’ उत्तरपद ‘पात्र’ के अर्थ को ‘दान’ तक ही सीमित कर रहा है, जिसका अर्थ है-पात्र केवल दान का है, किसी अन्य का नहीं।

इसी तरह ‘आनंदमग्न’ (संज्ञा विशेषण) समस्तपद का पहला पद ‘आनंद’ ‘मग्न’ के अर्थ-क्षेत्र को सीमित कर रहा है जिसका अर्थ है कोई व्यक्ति केवल आनंद में मग्न है किसी अन्य कार्यकलाप में नहीं। इसी तरह ‘तुलसीकृत’ (संज्ञा + कृदंत) समस्तपद का पहला पद ‘तुलसी’ अपने उत्तरपद ‘कृत’ के अर्थ-क्षेत्र को सीमित कर रहा है जिसका अर्थ है कि कोई वस्तु केवल ‘तुलसी’ के द्वारा कृत है, किसी अन्य के द्वारा नहीं।

तत्पुरुष समास के भेद

तत्पुरुष समास के अंतर्गत दो प्रकार के समास आते हैं-

(क)  कारकीय-चिह्न युक्त तत्पुरुष समास

(ख)  कारकीय-चिह्न रहित तत्पुरुष समास

क.   कारकीय-चिह्न युक्त तत्पुरुष समास

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस वर्ग के तत्पुरुष समासों के दोनों पदों के बीच कोई न कोई कारकीय-चिह्न (कर्ता तथा संबोधन कारक को छोड़कर) अवश्य आता है तथा समस्तपद बनाते समय इनका लोप कर दिया जाता है और विग्रह करते समय उन्हें पुनः जोड़ दिया जाता है; जैसे-कष्टसाध्य = कष्ट से साध्य, बाढ़ पीड़ित = बाढ़ से पीड़ित आदि।

कारकीय-चिह्नों के आधार पर तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद सामने आते हैं-

  1. कर्म तत्पुरुष (चिह्न-को)
  2. करण तत्पुरुष (चिह्न-से/के द्वारा)
  3. संप्रदान तत्पुरुष (चिह्न-के लिए)
  4. अपादान तत्पुरुष (चिह्न- से अलग होना)
  5. संबंध तत्पुरुष (चिह्न-का/की/के)
  6. अधिकरण तत्पुरुष (चिह्न- में/पर)

1. कर्म तत्पुरुष (चिह्न-‘को’)

समस्तपद 

विग्रह

जेबकतरा

जेब को कतरनेवाला

यशप्राप्त

यश को प्राप्त

सुखप्राप्त

सुख को प्राप्त

गगनचुंबी

गगन को चूमने वाला

ग्रामगत

ग्राम को गत

विदेशगत

विदेश को गत

स्वर्गगत 

स्वर्ग को गत

परलोकगमन

परलोक को गमन

2. करण तत्पुरुष (चिह्न-‘से’/के द्वारा’)

समस्त पद

विग्रह 

प्रेमाकुल

प्रेम से आकुल

कष्टसाध्य

कष्ट से साध्य

रेखांकित  

रेखा से अंकित

प्रेमातुर

प्रेम से आतुर

मदमस्त   

मद से मस्त

तुलसीकृत

तुलसी से/के द्वारा कृत

शोकाकुल 

शोक से आकुल

भयग्रस्त 

भय से ग्रस्त

गुणयुक्त  

गुणों से युक्त

हस्तलिखित 

हाथ से लिखित

विरहाकुल  

विरह से आकुल

मनचाहा      

मन से चाहा

बाढ़पीड़ित 

बाढ़ से पीड़ित

स्वरचित

स्व से/के द्वारा रचित

3. संप्रदान तत्पुरुष (चिह्न- के लिए)

समस्तपद  

विग्रह

रसोईघर

रसोई के लिए घर

मार्गव्य

यमार्ग के लिए व्यय

मालगोदाम 

माल के लिए गोदाम

आरामकुरसी 

आराम के लिए कुरसी

दानपेटी

दान के लिए पेटी

पूजाघर

पूजाके लिए घर

दानपात्र

दान के लिए पात्र

सत्याग्रह

सत्य के लिए आग्रह

देशभक्ति

देश के लिए भक्ति

डाकगाड़ी

डाक के लिए गाड़ी

प्रयोगशाला

प्रयोग के लिए शाला

पाठशाला

पाठ के लिए शाला

4. अपादान तत्पुरुष ( चिन्ह-‘से’ अलग होने के अर्थ में)

समस्तपद

विग्रह

कर्महीन

कर्म से हीन

कार्यमुक्त

कार्य से मुक्त

विद्याहीन

विद्या से हीन

नेत्रहीन

नेत्रों से हीन

धनहीन

धन से हीन

भुखमरा

भूख से मरा

घरनिकाला

घर से निकाला

ऋणमुक्त

ऋण से मुक्त

धर्मभ्रष्ट

धर्म से भ्रष्ट

सेवामुक्त

सेवा से मुक्त

रोगमुक्त

रोग से मुक्त

5. संबंध तत्पुरुष (चिह्न-‘का, के, की’)

समस्तपद

विग्रह

राजकुमार

राजा का कुमार

राजपुत्र

राजा का पुत्र

जीवनसाथी

जीवन का साथी

घुड़दौड़

घोड़ों की दौड़

राष्ट्रपतिभवन

राष्ट्रपति का भवन

सिरदर्द

सिर का दर्द

मृत्युदंड

मृत्यु का दंड

प्राणनाथ

प्राणों का नाथ

मातृभक्ति

मातृ की भक्ति

प्रसंगानुसार

प्रसंग के अनुसार

गृहस्वामी

गृह का स्वामी

कविगोष्ठी

कवियों की गोष्ठी

ग्रामपंचायत

ग्राम की पंचायत

सेनानायक

सेना का नायक

उद्योगपति

उद्योग का पति

6. अधिकरण तत्पुरुष (चिह्न-‘में, ‘पर’)

समस्तपद विग्रह
जगबीती जग पर बीती
शरणागत शरण में आगत पुरुषों में उत्तम
कलानिपुणॉ कला में निपुण
व्यवहारकुशल व्यवहार में कुशल
देशाटन देश में अटन
गृहप्रवेश गृह में प्रवेश
रेलगाड़ी रेल पर चलनेवाली गाड़ी
रसमग्न रस में मग्न
आपबीती आप (अपने) पर बीती

कारकीय-चिह्न रहित तत्पुरुष समास

इस वर्ग में दो तरह के समास आते हैं –

(i) जिन समासों का पहला पद कोई ‘निषेधवाची अव्यय’ शब्द होता है तथा विग्रह करते समय (हिंदी में) पूर्वपद के स्थान पर न अव्यय जोड़ दिया जाता है; जैसे-‘असभ्य’ समस्तपद का विग्रह होगा-‘न सभ्य। यह समास नञ् तत्पुरुष समास कहलाता है।

(ii)  दूसरे  वे  तत्पुरुष समास हैं जिनके दोनों पदों के बीच विशेषण-विशेष्य का अलावा उपमेय-उपमान का संबंध है तथा विग्रह करते समय उत्तरपद की विशेषता में सहयोग देनेवाले शब्द समूह को जोड़ दिया जाता है। इस वर्ग मे दो समास आते हैं-कर्मधारय तथा द्विगु समास; जैसे-

  • कर्मधारय समास: नीलगाय – नीली है जो गाय
  • कमलनयन– कमल रूपी नयन
  • द्विगु समास :पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समाहार
  • चतुर्भुज – चार भुजाओं का समाहार

आइए, कारकीय-चिह्न रहित तत्पुरुष समास के सभी भेदों को क्रमशः उदाहरण सहित समझते हैं–

(i ) नञ् तत्पुरुष समास

 संस्कृत में तत्पुरुष समास का एक भेद ऐसा भी था जिसका पूर्वपद कोई निषेधवाची अव्यय शब्द होता था। ऐसे तत्पुरुष समास को नञ् तत्पुरुष समास कहा जाता था। हिंदी में भी नञ् तत्पुरुष समास के अनेक उदाहरण मिलते हैं; जैसे- ‘अनिद्रा’, ‘असभ्य’, ‘नालायक’, ‘नास्तिक’, ‘अनादर’ आदि। इन शब्दों में क्रमश: ‘अ’, ‘ना’, ‘अन्’  निषेधवाची अव्यय शब्द आरंभ में आ रहे हैं। इस समास का विग्रह करते समय पूर्वपद के स्थान पर न अव्यय जोड़ दिया जाता है; जैसे-

अनिद्रा

न निद्रा

नालायक

न लायक (योग्य)

असफल

न सफल

अनादर

न आदर

अन्य उदाहरण

समस्तपद

विग्रह

असत्य

न सत्य

अयोग्य

न योग्य

अनपढ़

न पढ़ा

अनिच्छा

न इच्छा

असंभव

न संभव

अधर्म

न धर्म

अनाथ

न नाथ

अनहोनी

न होनी

अपठित

न पठित

असफल

न सफल

अमर

न मर (जो न मरे)

अनुदार

न उदार

विभिन्न समासों में अंतर

समास के विभिन्न भेदों में अंतर को नीचे विस्तार से समझाया गया है-

कर्मधारय तथा द्विगु समास में अंतर

कर्मधारय समास

(क) कर्मधारय समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण के अलावा कोई भी विशेषण होता है।

(ख) पूर्वपद प्राय: गुणवाचक विशेषण होता है।

(ग) विग्रह करते समय उत्तरपद के साथ ‘समूह’ या ‘समाहार’ शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता।

द्विगु समास

(क) द्विगु समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होता है।

(ख) पूर्वपद संख्यावाचक ही होता है।

(ग) विग्रह करते समय उत्तरपद के बाद ‘समूह या ‘समाहार’ शब्द का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।

उदाहरण

समस्तपद

विग्रह-I (कर्मधारय)

विग्रह-II (द्विगु)

त्रिलोचन

तीन नेत्र

तीन नेत्रों का समाहार

चतुर्भुज

चार भुजाएँ

चार भुजाओं का समाहार

चौराहा

चार राहें

चार राहों का समाहार

द्विगु तथा बहुव्रीहि समास में अंतर

द्विगु समास

(क) द्विगु समास में समस्तपद का पहला पद गौण होता है तथा उत्तरपद प्रधान।

(ख) दुविगु समास का पहला पद संख्यावाची विशेषण होता है।

(ग) विग्रह करते समय उत्तरपद के साथ ‘समूह’ या समाहार’ शब्द जोड़े जाते हैं।

बहुव्रीहि समास

(क)बहुव्रीहि समास में समस्तपद के दोनों पद गौण होते हैं तथा तीसरा बाहरी पद प्रधान।

(ख) बहुव्रीहि समास में समस्तपद के दोनों पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं।

(ग) विग्रह करते समय ‘समूह’/समाहार’ शब्द नहीं जोड़े जाते।

उदाहरण

समस्तपद

विग्रह-1 (द्विगु)

विग्रह-II (बहुव्रीहि)

तिरंगा

तीन रंगों का समाहार

तीन रंग हैं जिसके अर्थात भारतीय राष्ट्रध्वज

दशानन

दस मुखों का समाहार

दस मुख हैं जिसके अर्थात रावण

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