
Sangya in hindi – संज्ञा (Noun)
परिभाषा : संज्ञा का शाब्दिक अर्थ होता है- ‘नाम’। किसी प्राणी, वस्तु, स्थान, भाव आदि का नाम ही उसकी संज्ञा कही जाती है । दूसरे शब्दों में किसी का नाम ही उसकी संज्ञा है तथा इस नाम से ही उसे पहचाना जाता है। संज्ञा न हो तो पहचान अधूरी है और भाषा का प्रयोग भी बिना संज्ञा के सम्भव नहीं है ।
संज्ञा के प्रकार :
I. व्युत्पत्ति के आधार पर संज्ञा तीन प्रकार की होती है—
a. रूढ़ (जैसे—कृष्ण, यमुना),
b. यौगिक (जैसे— पनघट, 6 पाठशाला) और
c. योगरूढ़ (जैसे- जलज, यौगिक अर्थ-जल में उत्पन्न वस्तु, योगरूढ़ अर्थ-कमल)।
II. अर्थ की दृष्टि से संज्ञा पाँच प्रकार की होती है—
a. व्यक्तिवाचकसंज्ञा
b. जातिवाचक संज्ञा
c. द्रव्यवाचक संज्ञा
d. समूहवाचक संज्ञा
e. भाववाचक संज्ञा
इसे भी पढ़े–
A. व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) : जो किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध कराती है। जैसे—राम, गंगा, पटना आदि।
B. जातिवाचक संज्ञा (Common Noun): जो संज्ञा एक ही प्रकार की वस्तुओं का (पूरी जाति का बोध कराती है, के जातिवाचक संज्ञा कही जाती हैं। जैसे-नदी, पर्वत, लड़की आदि।
‘नदी‘ जातिवाचक संज्ञा है क्योंकि यह सभी नदियों का बोध कराती है किन्तु गंगा एक विशेष नदी का नाम है इसलिए गंगा व्यक्तिवाचक संज्ञा है।
C. द्रव्यवाचक संज्ञा (Material Noun): जिस संज्ञा शब्द से उस सामग्री या पदार्थ का बोध होता है जिससे कोई वस्तु बनी है। जैसे— ठोस पदार्थ सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, ऊन आदि द्रव पदार्थ तेल, पानी, घी, दही आदि गैसीय पदार्थ धुआँ, ऑक्सीजन आदि।
D. समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) : जो संज्ञा शब्द किसी एक व्यक्ति का वाचक न होकर समूह / समुदाय के वाचक हैं। जैसे- वर्ग, टीम, सभा, समिति, आयोग, परिवार, पुलिस, सेना, अधिकारी, कर्मचारी, ताश, टी-सेट, आर्केस्ट्रा आदि ।
समूहवाचक संज्ञाओं की सूची:
1. नक्षत्रों का मंडल,
2. तारों का पुंज,
3. पर्वतों की श्रृंखला,
4. फूलों / अंगूरों / कुंजियों का गुच्छा,
5. गुलों (फूलों) का दस्ता,
6. लताओं का कुंज,
7. केले का धौंद,
8. अनाजों का ढेर,
9. भेड़ों का झुंड,
10. टिड्डियों / यात्रियों/ घुड़सवारों / वक्ताओं का दल,
11. ऊँटों / यात्रियों का काफ़िला या कारवाँ,
12. चोर-डाकुओं/लुटेरों/पॉकेटमारों / अपराधियों का गिरोह,
13. कवियों / लेखकों/गायकों/मूर्खो / विद्वानों की मंडली,
14. राजनीतिज्ञों का गुट,
15. राज्यों / मजदूरों / कर्मचारियों का संघ,
16. अच्छे उद्देश्यों के लिए अच्छे व्यक्तियों का शिष्टमंडल,
17. कार्यों की सूची, आदि।
E. भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun): किसी भाव, गुण,दशा आदि का ज्ञान कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा होते हैं। जैसे— क्रोध, मिठास, यौवन, कालिमा आदि । कुछ भाववाचक संज्ञाएँ स्वतंत्र होती हैं, तो कुछ अन्य शब्दों की सहायता से बनती हैं। स्वतंत्र भाववाचक संज्ञाएँ: सुख, दुख, ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, प्रीति, श्रद्धा आदि परतंत्र भाववाचक संज्ञाएँ : भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा अव्यय में आव, –त्व, पन, अन, – इमा, – –ई. ता, –हट आदि प्रत्यय जोड़कर किया जाता है।
जैसे —
जातिवाचक संज्ञा |
से |
भाववाचक संज्ञा |
सर्वनाम |
से |
भाववाचक संज्ञा |
पुरुष |
|
पौरुष / पुरुषत्व |
अपना |
|
अपनत्व |
नारी |
|
नारीत्व |
मम |
|
ममत्व |
गुरु |
|
गुरुत्व |
निज |
|
निजत्व |
मनुष्य |
|
मनुष्यता |
आप |
|
आपा |
विशेषण |
से |
भाववाचक संज्ञा |
विशेषण |
से |
भाववाचक संज्ञा |
सुन्दर |
|
सुन्दरता, सौन्दर्य |
ललित |
|
लालित्य |
वीर |
|
वीरता, वीरत्व |
लाल |
|
लालिमा |
धीर |
|
धीरता, धैर्य |
भोला |
|
भोलापन |
बड़ा |
|
बड़प्पन |
अधिक |
|
अधिकता, आधिक्य |
क्रिया |
से |
भाववाचक संज्ञा |
क्रिया |
से |
भाववाचक संज्ञा |
घबराना |
|
घबराहट |
चढ़ना |
|
चढ़ाई |
थकना |
|
थकान |
भटकना |
|
भटकाव |
मिलना |
|
मेल |
रोना |
|
रूलाई |
अव्यय |
से |
भाववाचक संज्ञा |
अव्यय |
से |
भाववाचक संज्ञा |
दूर |
|
दूरी |
नीचे |
|
नीचाई |
निकट |
|
निकटता |
समीप |
|
समीपता |
इसे भी पढ़े–
संज्ञाओं के विशिष्ट प्रयोग
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में: कभी-कभी व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में होता है। जैसे- आज के युग में भी हरिश्चंद्रों की कमी नहीं है। (यहाँ ‘हरिश्चन्द्र‘ किसी व्यक्ति का नाम न होकर सत्यनिष्ठ व्यक्तियों की जाति का बोधक है।)
देश को हानि जयचंदों से होती है (यहाँ ‘जयचंद‘ किसी व्यक्ति का नाम न होकर विश्वासघाती व्यक्तियों की जाति का बोधक है।)
रामचरितमानस हिन्दुओं की बाइबिल है। (यहाँ बाइबिल किसी धर्म विशेष का ग्रंथ न होकर धर्म ग्रंथों की जाति का बोधक है।)
2. जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग व्यक्तिवचाक संज्ञा के रूप में: कभी-कभी जातिवाचक संज्ञा का प्रयोग व्यक्तिवाचक संज्ञाके रूप में होता है।
जैसे –
· गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की । (यहाँ ‘गोस्वामी‘ किसी जाति का नाम न होकर व्यक्ति (गोस्वामी तुलसीदास) का बोधक है।)
· शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा । (यहाँ ‘शुक्ल‘ किसी जाति का नाम न होकर व्यक्ति (आचार्य रामचन्द्र शुक्ल) का बोधक है।)
· पंडित जी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। (यहाँ पंडित किसी जाति का नाम न होकर व्यक्ति (पंडित जवाहरलाल नेहरू) का बोधक है।)
3. द्रव्यवाचक, समूहवाचक एवं भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग जातिवाचक संज्ञा के रूप में: यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि द्रव्यवाचक, समूहवाचक एवं भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग बहुवचन में नहीं होता है, क्योंकि बहुवचन में प्रयोग होने पर वे जातिवाचक संज्ञा बन जाती है।
जैसे—
· वहाँ तेल बिकता है। (तेल का एकवचन में प्रयोग, इसलिए तेल द्रव्यवाचक संज्ञा)
· वहाँ कई प्रकार के तेल बिकते हैं। (तेल का बहुवचन में प्रयोग, इसलिए तेल – जातिवाचक संज्ञा)
· सेना युद्ध के लिए तैयार है। (सेना का एकवचन में प्रयोग, इसलिए सेना – समूहवाचक संज्ञा)
· सेनाओं में मुठभेड़ हुई। (सेना का बहुवचन सेनाओं, इसलिए सेनाओं-जातिवाचक संज्ञा)
· उसकी चोरी पकड़ी गई। (चोरी का एकवचन में प्रयोग, इसलिए चोरी – भाववाचक संज्ञा)
· उस इलाके में कई चोरियाँ हुईं। (चोरी का बहुवचन चोरियाँ, इसलिए चोरियाँ – जातिवाचक संज्ञा)
4. विशेषण का प्रयोग संज्ञा के रूप में: जिस विशेषण के साथ उसका विशेष्य नहीं लगा होता, उसका प्रयोग संज्ञा के रूप में होता है।
जैसे-
· वह बहुत ग़रीब है। (वह-विशेष्य, गरीब-विशेषण)
· ग़रीबों की मदद करनी चाहिए। (गरीबों-जातिवाचक संज्ञा, यहाँ ‘ग़रीबों‘ शब्द ग़रीब व्यक्तियों के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है।
· वे जाने-माने विद्वान है। (वे-विशेष्य, विद्वान-विशेषण)
· विद्वानों का आदर करो। (विद्वानों-जातिवाचक संज्ञा, यहाँ ‘विद्वानों‘ शब्द विद्वान व्यक्तियों के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है।)
5. क्रिया का प्रयोग संज्ञा के रूप में (क्रियार्थक संज्ञा) : क्रिया से बने जिस शब्द का प्रयोग संज्ञा के समान हो,उसे ‘क्रियार्थक संज्ञा‘ कहते हैं।
जैसे—
· टहलना सेहत के लिए जरूरी कदम है।
· चलने से ही दूरी तय होगी।
· दौड़ना खिलाड़ियों की दिनचर्या में शामिल हैं।
· पढ़ना एक अच्छी आदत है।
6. अव्यय का प्रयोग संज्ञा के रूप में : कभी-कभी अव्यय का प्रयोग संज्ञा के रूप में होता है।
जैसे-
· हाँ में हाँ मिलाना उसकी आदत है। (‘हाँ में हाँ‘ क्रिया-विशेषण अव्यय का संज्ञा के रूप में प्रयोग)
· उसका अंदर-बाहर एक-सा है। (‘अंदर-बाहर‘ क्रिया विशेषण अव्यय का संज्ञा के रूप में प्रयोग)
· उनकी बड़ी वाह-वाह हुई। (‘वाह-वाह‘ विस्मयादिबोधक अव्यय का संज्ञा के रूप में प्रयोग)
· क्या हाय-हाय लगा रखी है। (‘हाय हाय‘ विस्मयादिबोधक अव्यय का संज्ञा के रूप में प्रयोग)
पद-परिचय (Parsing): पद-परिचय में वाक्य के प्रत्येक पद को अलग-अलग करके उसका व्याकरणिक स्वरूप बताते हुए अन्य पदों से उसका संबंध बताना पड़ता है। इसे पद- अन्वय भी कहते हैं।
संज्ञा का पद-परिचय (Parsing of Noun): वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का पद परिचय देते समय संज्ञा, उसका भेद, लिंग, वचन, कारक एवं अन्य पदों से उसका संबंध बताना चाहिए।
जैसे –
राम ने रावण को वाण से मारा।
1. राम : संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुंलिंग, एकवचन, कर्ता कारक, “मारा” क्रिया का कर्ता ।
2. रावण : संज्ञा, व्यक्तिवाचक, पुंलिंग, एकवचन, कर्म कारक, ‘मारा‘ क्रिया का कर्म ।
3. वाण : संज्ञा, जातिवाचक, पुलिंग, एकवचन, करण कारक‘मारा‘ क्रिया का साधन।
संज्ञा का रूप परिवर्तन लिंग, वचन, कारक के अनुरूप होता है, अतः इन पर भी विचार करना आवश्यक है।
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Nice 🙂