Kabir ke dohe

Kabir Ke Dohe: संत कबीर दास जी ने हिंदी साहित्य जगत में बहुत बड़ा योगदान दिया। उन्होंने अनेकों दोहों की रचना की है। उनके द्वारा लिखे दोहे देश भर में प्रसिद्ध हैं। आज हम लेकर आए हैं कबीर दास जी के कुछ ऐसे बेहद ही लोकप्रिय दोहों का एक छोटा सा संग्रह जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे। प्रत्येक दोहे में आपको बेहद ही गहरा अर्थ देखने को मिलेगा। आशा करते हैं की आपको ये Kabir Ke Dohe पसंद आयेंगे।

Kabir ke dohe

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।

क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही। सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही॥

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पायबलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।

साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाएमै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई. पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई|

कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक। बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

वैद्य मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार। एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार॥

कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत । पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख ।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।

चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोएदुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।

जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त, अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत। 

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

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